एेसा गांव जहां होली के दिन मनाया जाता है शोक!.
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रायबरेली डलमऊ आपसी भाईचारे का त्योहार होली जहां पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार से लोगों में जहां एकता और भाईचारे की एक मिसाल देखने को मिलती है। और पूरा देश खुशी के रंगों में रंग जाता है ।डलमऊ तहसील क्षेत्र के दो गांव खजूरी और जलालपुर धई ऐसे भी हैं जहां पर होली के दिन शोक मनाया जाता है । इस संबंध में कई मत है । खजूरी गांव के बुजुर्ग ग्रामीण रामदीन आदि का कहना है कि इस गांव में प्राचीन समय में कुछ शासकों का किला था । होली के दिन ही मुगल शासकों ने इस किले पर आक्रमण करके उसे ध्वस्त कर दिया तथा सैकड़ों हत्याएं कर दी तब से इस गांव में होली के दिन शोक मनाया मनाया जाता है जाने लगा और अभी होली के बाद की अष्टमी के बाद जो भी पहला शुक्रवार और सोमवार पड़ता है उसी दिन गांव में होली का त्योहार मनाया जाता है । गांव निवासी बुजुर्ग ग्रामीण कहते हैं कि कई बार इस परंपरा से हटकर लोगों ने होली के दिन त्यौहार मनाने की कोशिश की मगर कोई ना कोई अप्रत्याशित घटना होने से उस दिन शोक ही मनाया जाता है ।
दूसरा गांव जलालपुर धई यहां पर भी होली के दिन होली ना मनाने के कई मत है । पहला मत याेगी जलालपुर दही रियासत पर पूर्व समय में और समय से धईसेन नाम का राजा शासन करता था । इस रियासत पर मुगल शासक सैयद जमालुद्दीन की बहुत पहले से नजर थी और रोज वह धई रियासत पर राज करने के सपने वह देखा करता था। एक दिन उसने अपने गुप्तचरों से पता लगा लिया की होली के त्योहारों के दिन राजा धईसेन अपनी प्रजा के साथ नीहत्ते हो कर होली मनाता है । इस अवसर का फायदा उठाकर जलालुद्दीन ने अपनी सेना को तैयार किया और रातोरात सेना को लेकर जलालपुर गांव के किनारे गन्ने के खेतों में आ कर छुप गया। होली के दिन राजा धईसेन जब अपनी प्रजा के साथ होली के उल्लास में डूबा हुआ था तो जम जलालुद्दीन की सेना ने जलालपुर पर आक्रमण कर दिया और धईसेन की सेना को चारों तरफ से घेर लिया घबराकर धई सेन की सेना ने मोर्चा तो संभाला मगर जलालुद्दीन के षड्यंत्र के आगे धईसेन की सेना टिक ना सकी। धईसेन ने वीरता पूर्वक युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुआ । तभी से इस गांव में होली के दिन शोक मनाया जाता है। गांव के बुजुर्ग ग्रामीणों का मानना है कि राजा धई सेन उनके पूर्वजों के स्वप्न में आए और कहा कि मैं होली के बाद सातवें दिन के बाद जो भी सोमवार या शुक्रवार सबसे पहले पड़ेगा उसी दिन होली मनाई जाएगी ।तब से यहां पर यही मत प्रचलित है और लोग उसी परंपरा को मानते हुए चले आ रहे हैं। ग्रामीणों का एकमत और भी है कि जलालपुर गांव के कुल देवता जिनको लोग भुइया बाबा के नाम से जानते थे वह गांव के किनारे ही कुटी बनाकर रहते थे होली की रात चमेरी नाम का एक क्रूर राजा इन को उठा ले गया था । जब सुबह ग्रामीणों ने अपने कुल देवता को ढूंढा और ना मिलने पर गांव के लोगों ने होली न मनाने का निश्चय किया। अगली रात गांव के कुछ लोगों को देवता ने स्वप्न देकर कहा की आप लोग होलिका दहन के सातवें दिन सबसे पहले पड़ने वाला वाले शुक्रवार या सोमवार को होली का पर्व मनाएं। तभी से गांव में होलका दहन के 7वे दिन जो भी शुक्रवार या सोमवार पड़ता है उसी दिन होली मनाई जाती है । यह परंपरा तभी से आज तक अनावृत चली आ रही है।
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