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भागीरथी के तट पर स्थित संस्कृत विद्यालय को है भागीरथ का इंतजार

भागीरथी के तट पर स्थित संस्कृत विद्यालय को है भागीरथ का इंतजार 

सरकारी योजनाओं से दूर संस्कृत विद्यालय जिम्मेदार मौन


       रायबरेली जनपद का एक मात्र गुरुकुल शिक्षा पद्धति से संचालित माध्यमिक स्कूल व महाविद्यालय सरकार व विभागीयअधिकारियों की उपेक्षा के कारण दमतोड़ रहे है । लेकिन जिम्मेदार अंजान हैं । उक्त गुरुकुल में सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के लाभ से छात्र कोसों दूर हैं । 

         श्री राधाकृष्ण महाविद्यालय डलमऊ की स्थापना वर्ष 1956 में परम् आदर्श महामण्ड़ले श्वर स्वामी देवेंद्रा नन्द गिरि ने अपने गुरु समाधिष्ठ स्वामी बद्रीनारायण गिरि की स्वीकृति लेकर की थी । जिसकी मान्यता माध्यमिक शिक्षा परिषद लखनऊ व स्नातक , परास्नातक की मान्यता सम्पूर्णा नन्द विश्वविद्यालय वाराणसी से ली गई थी । गुरुकुल के संस्थापक स्वामी देवेंद्रा नन्द गिरि ने बताया कि विद्यालय के प्रारम्भ के दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी तब संस्कृत भाषा को लेकर नए कानून बने लेकिन समय के साथ साथ सरकारें बदली , सरकारों की तुष्टीकरण नीति कारण संस्कृत भाषा की उपेक्षा होती चली गई । उपेक्षा के कारण छात्रों ने भी संस्कृत की ओर से मुख मोड़ना शुरु कर दिया । आज हालत यह है कि जो बच्चे पठन पाठन में कमजोर होते हैं उन्हें ही परिजन गुरुकुलों व संस्कृत विद्यालयों में प्रवेश दिला रहे हैं । 

मठ के सन्यासी सवांर रहे छात्रों का भविष्य

              डलमऊ बड़ा मठ में चल रहा गुरुकुल शिक्षापद्धति विद्यालय सरकार द्वारा वित्तपोषित है । यहां प्रारम्भ में 6 शिक्षकों की तैनाती शासन द्वारा की गई थी । समय के साथ साथ शिक्षक सेवा निवृत्त होते गए वर्तमान में एक शिक्षक के सहारे ही विद्यालय संचालित हो रहा है । उक्त विद्यालय में 2 सौ छात्र पंजीकृत हैं , जिन्हें पढाने के लिए सिर्फ एक शिक्षक है । शिक्षकों की कमी को देखते हुए मठ के संन्यासियों ने बच्चों को पठाने का बीणा उठा लिया । मठ के सन्यासियों द्वारा बच्चों को वेदों , शास्त्रों, उपनिषदों, व कर्मकांड़ों का बोध कराया जाता है ।

यहां कराया जाता है वैदिक व कर्मकांड़ों का बोध

           डलमऊ बड़ा मठ में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र प्रात: 4 बजे गंगा स्नान कर देववाणी में मंत्रों का उचारण करते हैं । उक्त मठ में संचालित गुरुकुल में शिक्षा के साथ ही वेदों , उपनिषदों , गीता ,कर्मकांड़ों, का बोध कराया जाता है । उक्त गुरुकुल में शिक्षा गृहण करने वाले छात्र देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी वैदिक साहित्य का प्रचार प्रसार कर रहे हैं ।
नई सरकार से उम्मींदें


         नई सरकार में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से मठ के संस्थापक को एक उम्मीद जगी है कि पूर्वती सरकार में सभी विभागों में उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति की गई थी । उसी तर्ज पर संस्कृत भाषा के उत्थान की आवस्यकता है । सरकार को संस्कृत के उत्थान पर ध्यान देना चाहिए , जिससे संस्कृत की ओर लोगों का आकर्षण बढे ।

गुरुकुल में रहकर शिक्षा गृहण करते हैं छात्र


                डलमऊ बड़ा मठ में संचालित गुरुकुल शिक्षा पद्धति विद्यालय में सुदूर जनपदो के 30 छात्र रहकर वैदिक व कर्मकांड़ों की शिक्षा गृहण कर रहे हैं । जिनका पालन पोषण मठ अपने निजी श्रोतों से कर रहा है ।

सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ

               डलमऊ बड़ा मठ में संचालित विद्यालय में अध्ययन करने वाले छात्र सरकार द्वारा चलाई जा रही मध्यान भोजन योजना, छात्रवृत्ति योजना, ड्रेस, पुस्तकों आदि से वंचित हैं । 

विद्यार्थियों का दर्द

           डलमऊ बड़ा मठ में शिक्षा गृहण कर रहे महेश कुमार ने बताया कि संस्कृत विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति का लाभ नहीं मिल रहा । नीरज पांड़ेय निवासी फतेहपुर ने बताया कि संस्कृत विद्यार्थियों को शिक्षकों की कमी के कारण शिक्षा गृहण करने में परेसानियों का सामना करना पड़ रहा है । वहीं अमन मिश्र निवासी लखीमपुर खीरी से आकर डलमऊ बड़ा मठ में संस्कृत साहित्य व वैदिक कर्मकांड़ों का अध्ययन कर रहे हैं , लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण उनकी शिक्षा बाधित हो रहा है । मठ के छात्र सूरज मिश्र ने कहा कि संस्कृत विद्यार्थियों के हित के लिए अधिकारियों को आवस्यक कदम उठाने चाहिए । छात्र राजेंद्र वैश्य ने कहा कि संस्कृत साहित्य को बढावा देने के लिए सरकार को ध्यान देना चाहिए । क्योंकि संस्कृत भाषा वेद पुराणों की जननी है ।

महामण्ड़लेश्वर स्वामी देवेंद्रानन्द गिरि 

संस्कृत साहित्य को बढाने के उद्देश्य से विद्यालय की स्थापना की थी । लेकिन सरकारों के द्वारा की गई संस्कृत भाषा की उपेक्षा से मन दुखित है । सरकार को सभी प्राथमिक व जूनियर विद्यालयों में एक संस्कृत अध्यापक की नियुक्ति करनी चाहिए ।"

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