शमीम शर्मा
एक बार किसी बच्चे ने अपनी मम्मी से पूछा-यह बताओ कि आपको मेरी सारी समस्याओं को हल करना कैसे आता है? मां ने बच्चे को समझाते हुए कहा- ईश्वर हमें मां बनाने से पहले हमारा इम्तिहान लेता है कि क्या हम बच्चों की समस्याओं को सुलझाना जानती हैं या नहीं? और अगर हम उस इम्तिहान में पास हो जायें तभी हमें मम्मी बनाता है। बच्चा मुस्कराकर बोला-हां समझ गया, अगर आप उस इम्तिहान में फेल हो जातीं तो भगवान आपको पापा बना देता।
बच्चे के इस अनुमान में कितनी सच्चाई है, कहा नहीं जा सकता पर यह तो मानना ही पड़ेगा कि जैसे ज्योतिषी भविष्य को पढ़ लेता है, वैसे ही मां अपने बच्चे का दिल पढ़ लेती है। ज्योतिषी तो फिर भी गलत हो सकता है पर मां की इबारत कभी गलत नहीं होती। कुदरत का क्या कमाल है कि जब बच्चे के तुतलाहट भरे शब्दों को कोई माई का लाल नहीं समझ सकता, तब सिर्फ मां बता देती है कि बच्चा क्या कह रहा है। यह तो वही बात हुई कि जैसे डॉक्टर के लिखे को सिर्फ कैमिस्ट ही पढ़ सकता है। मां को तो नींद में भी पता चल जाता है कि उसका बच्चा कहां से उघाड़ा रह गया है। लिहाजा उठकर बच्चे को रजाई-कम्बल उढ़ाने लगती है।
कुछ दिन पहले मेरी अपने एक परिचित से फोन पर बात हो रही थी तो मैंने पूछ लिया-बेटा कौन-सी क्लास में हो गया? जवाब मिला-पक्का नहीं पता, छठी-सातवीं में होगा। बात खत्म होने के बाद मैं सोचने लगी कि जब क्लास का ही नहीं पता तो होम वर्क, रिजल्ट-पीटीएम का तो क्या ही पता होगा। मां ही इंटरनेट से ढूंढ-ढूंढ कर अपने बच्चों को भाषण-कवितायें रटवाती है, उनके मॉडल-चार्ट बनाती है, टिफिन में भांति-भांति के भोजन भरकर उन्हें स्कूल भेजती है। अपने बच्चे के पेट से जुड़ी बीमारियों की भले ही वह डॉक्टर न हो, पर बच्चे के पेट की भूख और जीभ के स्वाद को वह इतनी बारीकी से समझती है मानो कोई आत्मज्ञानी हो।
अपने बच्चे के स्वाद के चक्कर में ही उसने एक के बाद एक नये-नये पकवानों का आविष्कार किया होगा। बच्चे को रिझाने के लिये उसने आलू से परांठे, पकोड़े, टिक्की, समोसे, चिप्स, बोंडा, कटलेट, हलवा, चाट, रायता और न जाने क्या-क्या बना डाला कि बच्चे को कुछ तो पसंद आयेगा ही। ये सारे आविष्कार मां के प्यार की पराकाष्ठा हैं।
000
एक बर की बात है कि घणी सुथरी मास्टरणी दसवीं के टाबरां की क्लास लेण गई तो उसतैं देखते ही नत्थू का मुंह खुला का खुला रह गया। वा धोरै आकै बोल्ली-बेटा! मुंह तो बंद कर ले, मैं तो आंख्यां तैं भी दिख जाऊंगी।
सौजन्य- दैनिक ट्रिब्यून।
एक बार किसी बच्चे ने अपनी मम्मी से पूछा-यह बताओ कि आपको मेरी सारी समस्याओं को हल करना कैसे आता है? मां ने बच्चे को समझाते हुए कहा- ईश्वर हमें मां बनाने से पहले हमारा इम्तिहान लेता है कि क्या हम बच्चों की समस्याओं को सुलझाना जानती हैं या नहीं? और अगर हम उस इम्तिहान में पास हो जायें तभी हमें मम्मी बनाता है। बच्चा मुस्कराकर बोला-हां समझ गया, अगर आप उस इम्तिहान में फेल हो जातीं तो भगवान आपको पापा बना देता।
बच्चे के इस अनुमान में कितनी सच्चाई है, कहा नहीं जा सकता पर यह तो मानना ही पड़ेगा कि जैसे ज्योतिषी भविष्य को पढ़ लेता है, वैसे ही मां अपने बच्चे का दिल पढ़ लेती है। ज्योतिषी तो फिर भी गलत हो सकता है पर मां की इबारत कभी गलत नहीं होती। कुदरत का क्या कमाल है कि जब बच्चे के तुतलाहट भरे शब्दों को कोई माई का लाल नहीं समझ सकता, तब सिर्फ मां बता देती है कि बच्चा क्या कह रहा है। यह तो वही बात हुई कि जैसे डॉक्टर के लिखे को सिर्फ कैमिस्ट ही पढ़ सकता है। मां को तो नींद में भी पता चल जाता है कि उसका बच्चा कहां से उघाड़ा रह गया है। लिहाजा उठकर बच्चे को रजाई-कम्बल उढ़ाने लगती है।
कुछ दिन पहले मेरी अपने एक परिचित से फोन पर बात हो रही थी तो मैंने पूछ लिया-बेटा कौन-सी क्लास में हो गया? जवाब मिला-पक्का नहीं पता, छठी-सातवीं में होगा। बात खत्म होने के बाद मैं सोचने लगी कि जब क्लास का ही नहीं पता तो होम वर्क, रिजल्ट-पीटीएम का तो क्या ही पता होगा। मां ही इंटरनेट से ढूंढ-ढूंढ कर अपने बच्चों को भाषण-कवितायें रटवाती है, उनके मॉडल-चार्ट बनाती है, टिफिन में भांति-भांति के भोजन भरकर उन्हें स्कूल भेजती है। अपने बच्चे के पेट से जुड़ी बीमारियों की भले ही वह डॉक्टर न हो, पर बच्चे के पेट की भूख और जीभ के स्वाद को वह इतनी बारीकी से समझती है मानो कोई आत्मज्ञानी हो।
अपने बच्चे के स्वाद के चक्कर में ही उसने एक के बाद एक नये-नये पकवानों का आविष्कार किया होगा। बच्चे को रिझाने के लिये उसने आलू से परांठे, पकोड़े, टिक्की, समोसे, चिप्स, बोंडा, कटलेट, हलवा, चाट, रायता और न जाने क्या-क्या बना डाला कि बच्चे को कुछ तो पसंद आयेगा ही। ये सारे आविष्कार मां के प्यार की पराकाष्ठा हैं।
000
एक बर की बात है कि घणी सुथरी मास्टरणी दसवीं के टाबरां की क्लास लेण गई तो उसतैं देखते ही नत्थू का मुंह खुला का खुला रह गया। वा धोरै आकै बोल्ली-बेटा! मुंह तो बंद कर ले, मैं तो आंख्यां तैं भी दिख जाऊंगी।
सौजन्य- दैनिक ट्रिब्यून।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें