SC ने कहा धर्म-जाति के नाम पर वोट की राजनीती नहीं, जनता में कितना होगा असर.
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सुप्रीमकोर्ट का आदेष धर्म जाति भाषा के नाम पर वोट की राजनीती जनता में कितना असर कर पायेगी।
रायबरेली में आज सुप्रीमकोर्ट के जाति और धर्म, भाषा के आधार पर आये राजनीतिक पार्टीयों एवं धर्म व बुद्धीजीवों के लोगांे के अलग अलग बयान आया है। लेकिन सभी ने कोर्ट के इस आदेष को सराहनीय और भविश्य के लिये कुछ हदतक राजनीतिक लोगों पर नकेल कसने में कामयाब होने की बात कही है और निर्णय को सही माना जा रहा है।
लेकिन लोगों का कहना है कि कोर्ट के निर्णय को आने में काफी देर हो गई है । क्योंकि रायबरेली के कलेट्रेट के वकील विजय विद्रोही का कहना है कि आज जनता हो या राजनीतिक पार्टीयां सभी लोगों में जाति व्यवस्था और सम्प्रदायवाद कूट कूट कर भर चुका है। आज जनता में कोई भी अपनी जाति के नेता को ही वोट देना चाहता है क्योंकि वह जानता है कि यह यही मेरा भला कर सकता है। लेकिन ऐसा भी नही है कि जाति और सम्प्रदाय और भाशा की लडाई तभी खत्म हो सकती है , जब किसान हो या व्यापारी ये सभी अपने मुददे आधारित खुद की लइाई में षामिल हो तब इसका फायदा राजनीतिक लोग नही उठा सकते है । किसान अपने लडाई सिचाई, बिजली,पानी ,बीज,फसल का सही कीमत ऐसे न जाने कितने मुददे होगें उन सभी को खुद उठाने होगें उसमें जाति केवल किसान होगी न कि अलग अलग वर्गो की इसी तरह व्यापारी वर्ग इनको भी अपनी जाति केवल व्यापारी होने चाहिये ।
मुस्लिम व्यापारी नेता अख्तर अन्सारी ने इस फेसले को बहुत ही सराहनीय बताया है । लेकिन उन्होने बताया कोर्ट का आदेष हो जाने मात्र से बदलाव नही हो सकता है , इसके लिये चुनाव आयोग जिले के सभी जिलाअधिकारी और जिले के सभी पुलिस अधिक्षकों को सख्ती से आदेष करवाने की सूचना देगें और जनता और राजनीतिक पार्टीयों पर लागू किया जाना चाहिये तभी इसका असर जनता में दिखाई देगा।
बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि कोर्ट ने अपना निर्णय तो सुना दिया पर अब लोकल स्तर पर इसे लागू करवाना यहां के अधिकारियों पर निर्भर करता है कि वह कितना इस आदेष को लागू करवा पाते है या नही ।
क्योकि राजनीतिक नेताओं मंे सबसे ज्यादा प्रचार प्रसार और होल्डिगं को बैनरों को लोगों को रिझाने में लगातें है वह बताने की कोषिष करते है कि मैं फलां जाति और धर्म का व्यक्ति हूं, और मैने इस जाति और धर्म के लोगों का भला किया है और इस जाति के लोगों को रोजगार और षिक्षा और विकास किया है और इस धर्म को बढाने की कोषिष करता आया हूं और आगें भी करता रहूंगा । इस तरह के पोस्टरों और विज्ञापनों और प्रचार से लोगों के मन में अपनी जगह बनाने मेे ज्यादातर राजनीतिक पार्टीयों के लोग कामयाब हो जाते है। अगर इन सब पर चुनाव आयोग और प्रषासन षक्ती से पेष आयेगा तो आने वाले भविश्य में चुनाव कराने वाले अधिकारियांे और जनता में एक अच्छा मैसेज जायेगा और जाति और धर्म और भाशा की राजनीति न होकर केवल विकास और लोगों की भलाई करने वाले राजनीतिक प्रत्याषी चुनाव जीत कर संसद और विधानसभा में बैठे मिलेगें और जनता एक बात कहेगी कि देखों वह नेता ने सभी को समान समझा था इस लिये उसको मैने वोट दिया था । लेकिन यह तो अभी एक सपना है यह सपना कब सच साबित होगा यह तो आने वाले लोक सभा और विधानसभा और पंचायती चुनाव में पता चलेगा । क्योकि जाति धर्म लोगों के खून में बस चुकी है और इसको निकलाना किसी कोर्ट या नेता या प्रषासन के हाथों में नही है यह तो खुद जनता और लोगों को अपने अन्दर झांक कर और खुद सुधरने की बात जिस दिन सोच लेगा उसी दिन जाति और धर्म जैसी व्यवस्था खत्म हो जायेगीं।
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