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रायबरेली आज इंदिरा गांधी का100 जन्म दिन मनाया जा रहा है। इंदिरा गांधी 19 नवम्बर 1917 को पंडित जवाहर लाल
नहेरु जी और उनकी पत्नी कमला नहेरु के यहां पर जन्म हुआ था। इंदिरा गांधी जी का रायबरेली में काफी पुराना सम्बन्ध है येे कहा जाए की राजनितिक की नींव ही रायबरेली थी। क्योंकि इंदिरा गांधी जी के पति फिरोज गांधी 1951 और 1957 में रायबरेली से सांसद रहे इसके बाद 1967 में इंदिरा गांधी ने चुनाव लड़ा और कांग्रेस की जीत हासिल की और सांसद बनी इसके बाद 1971से 1980 तक रायबरेली की सांसद रही।
इंदिरा गांधी का रायबरेली  जनता से काफी अच्छा रिश्ता रहा है। क्योंकि रायबरेली के लोगों का मानना है कि यहां पर फिरोज गांधी जी आया करते थे ।और उनके साथ कभी कभी इंदिरा गांधी भी लोगों से मिला करती थे। वह जब खुद सांसद बने। और जब फिरोज गाँधी  जी की मृत्यु हुई इसके बाद तो जनता से एक परिवार की तरह मुलाकात करती थी चाहे फिर वह दिल्ली हो या रायबरेली दोनों जगह उसी रिश्ते को सम्मान देती थी। रायबरेली में उन्होंने जनता को रोजगार का सहारा दिया करीब 200 फैक्ट्रियां , सड़कें , पुल, इंस्ट्टीयूट,लाइब्रेरी स्कुल आदि ऐसी न जाने कितनी जनता की जरूरतों को पूरा करने की पूरी कोशिश की गई और यहां की जनता काफी खुश दिखी। क्योंकि उनको एक ऐसी सांसद मिली जो नेता कम मां जैसी ज्यादा दिखती थी । वह जनता को अपने बच्चे की तरह ध्यान दिया करती थी यह केवल रायबरेली ही नहीं वह सारे देश की इसी तरह ख्याल करती थी । उनका मानना था की मैं किसी के साथ अन्याय नहीं करती हूं ।रायबरेली जब भी आया करती थी लोगों से उनके नाम से पुकारा करती थी और सभी के घर जाकर उनके समस्याएं उनके बच्चों के बारे में ज्यादा पूछा करती थी। अगर रास्ते में जा रही हैं कोई बच्चा उनसे मिलने की कोशिश करता था तो वह अपने गाड़ी से उतरकर तुरंत बच्चे को उसका हालचाल पूछती थी।
पर रायबरेली में जनता का मानना है की कांग्रेस में जब से इंदिरा जी मृत्यु हुई है काफी बदलाव आ गया है। उन्होंने रायबरेली में काफी कुछ किया था उनकी विरासत को आगे बढ़ाने की सोनिया गांधी ने कोशिश तो की मगर सफलता पूरी तरह से नहीं मिली। फैक्ट्रियां जिससे जनता को रोजगार मिलता था वह  पूरी तरह से बंद हो चुकी है ।उनके बनाए हुए काफी कुछ विरासत में उन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बजट मिलता है पर पूरी तरह से पार्टियों में भेदभाव का का रूप ले लिया गया है ।
आज रायबरेली ही नही सारा हिंदुस्तान इंदिरा गाँधी को लोग प्रियंका गांधी में देख रहे है। कि अगर राजनीती में इंदिरा गांधी नहीं है तो उनकी पोती प्रियंका गांधी हो सकता है ।अपनी दादी की जमीन को फिर से हरा भरा कर दे जिससे यह कांग्रेस पार्टी इस देश को इंदिरा गांधी जैसी विकास की क्रांति को आगे बढ़ा सकें।
रायबरेली में आज आचार आचार्य महा वीर प्रसाद द्विवेदी जी की जन्मदिन मनाया जा रहा है क्योंकि आचार महाप्रसाद महावीर प्रसाद द्रिवेदी  रायबरेली के दौलतपुर के रहने वाले थे।
इंदिरा गांधी जी तीन दिन की यात्रा पर न्यूयार्क गयी थी वहां उन्होंने वहां पर एक पुस्तकालय में जाकर आचार्य महावीर प्रसाद जी की किताब देखी और उसके बारे में जाना तो तुरंत अपने साथ रह रहे यशपाल कपूर जी और पंडित गयाप्रसाद शुक्ला जी से कहा कि जब वह रायबरेली जाएँगी तो  वह कुछ इस महापुरुष के लिए कुछ करेंगी और जब वह आयी तो उन्होंने टी सड़को का निर्माण किया और उन्होंनेसराय बहेलिया खेड़ा से दौलत पुर बाया भोजपुर बनवाया था। और इसका उद्घाटन 7 अफ़्रेल 1973 को आचार्य महावीर प्रसाद दिर्वेदी के नाम से किया गया। इंदिरा गांधी की काफी ऐसे किस्से है जो सुनाने के लिए समय कम पड़ जाएगा।
इंदिरा गाँधी की विरासत की थमती साँसे /
इंदिरा गाँधी उध्यान की स्थापना के पीछे वनस्पतियों में अनुसंधान का उद्देश्य था / लेकिन यह उद्यान अपनी सार्थकता को साबित नहीं कर पा रहा है/ वजह साफ है कि जिस कार्य को लेकर और जिस उद्देश्य से इंदिरा गांधी वानस्पतिक उद्यान नाम देकर अब से वर्षों पूर्व स्थापित किया गया था/ उसने वनस्पतियों की अनुसंधान की तो बात दूर रही औषधि पेड़ पौधे भी खत्म हो चुके है/  वन विभाग के उच्च पदस्थ अधिकारीयों को चाहिए कि इस उद्यान में तरह-तरह की वनस्पतियों के पौधे रोपित कर उन को संरक्षित करके उन में अनुसंधान किया जाए/ जिससे यह उद्यान एक अनुसंधान शाला के रूप में विकसित हो सकें यह उद्यान लोगों के मॉर्निंग वॉक करने और सैर-सपाटे का एक मात्र साधन बन कर रह गया/ यूं तो इंदिरा गांधी वानस्पतिक उद्यान की स्थापना कई दशक पहले करोड़ों की लागत से हुई थी जब रायबरेली में वानस्पतिक उद्यान की स्थापना हुई तो यह जानकर लोग बेहद खुश थे कि कभी हमारे रायबरेली में ही वनस्पतियों में अनुसंधान होगा यहां औषधीय कार्यशालाएं होगी यहां आयुर्वेदिक औषधियों का उत्पादन हो सकता है ढेर सारी संभावनाएं थी/ लेकिन ना तो इसके विकास के लिए कोई बजट दिख रहा है और ना ही इस को संरक्षित करने के लिए कोई साधन नहीं दिख रहा है लिहाजा यह उद्यान अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है/   
: वृक्ष मानव के सबसे अधिक विश्वसनीय मित्रों में एक है। जिस देश को अपने भविष्य की चिंता है उसे अपने वन, उद्यान की देखरेख ठीक ढंग से करना चाहिए। यह विचार पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के हैं जिसे इंदिरा उद्यान में लगी उनकी प्रतिमा के शिलापट में लिखा गया है। विडंबना है कि उनके कथन पर अमल करने की जहमत न प्रशासनिक मशीनरी उठा रही है और न स्वयंसेवी संगठन। यही कारण है कि कभी हरा भरा रहने वाला इंदिरा उद्यान इन दिनों से बदहाली के दौर से गुजर रहा है।
पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने 22 नवंबर 1988 में इंदिरा उद्यान का उद्घाटन किया था। उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। कोलकाता और बनारस से दुर्लभ पेड़ पौधे लाकर इस उद्यान में लगाए गए थे। तब प्रदेश सरकार ने आवश्यक धन खर्च कर इसे सुंदर वाटिका के रूप में सजाया था। यही नहीं सालाना खर्च के लिए 12 लाख का बजट भी स्वीकृत किया था। बाद में गैर कांग्रेसी सरकार ने इसे घटाकर एक लाख बीस हजार कर दिया। यहां काम कर रहे एक दर्जन दिहाड़ी मजदूरों को दो साल से मजदूरी नही मिली है।
प्रदेश सरकार द्वारा रखरखाव के लिए धन न देने के कारण उद्यान उजाड़ में बदल गया है। सुंदर फूलों की जगह खाली क्यारियां दिख रही है, चारों तरफ बड़ी बड़ी घास उग आई है। फव्वारे सूखे पड़े हैं,/ बच्चों के लिए बने तालाब से जल और नाव दोनो गायब है। विदेशी पक्षियों को पालने के लिए बने केबिन में जंगली बेल ने कब्जा कर लिया है।
उद्यान में बादाम, छोटी इलाइची, दालचीनी, तेज पत्ता, कुटज रूद्राक्ष, बालम खीरा, हर्र जैसे दुर्लभ पौधे पेड़ मौजूद हैं/ शहर में अकेला उद्यान होने के कारण ज्यादातर प्रेमी युगल ही समय बिताने चले आते हैं। रविवार व छुट्टियों में कुछ लोग बच्चों साथ घूमने चले जाते है।
सुबह शाम आते लोग
सितंबर में रोज दोपहर के बाद करीब 100 लोग पांच रूपये का टिकट लेकर घूमने आ रहे हैं। जाड़े के दिनों में आने वालों की संख्या बढ़ जाती है। सुबह भी बच्चे , बुजुर्ग , महिलाएं टहलने व योगा करने के लिए आते हैं। यह शहर का इकलौता पार्क है, जहां ताजी हवा के लिए टहला जा सकता है।इंदिरा गांधी स्मारक वानस्पतिक उद्यान वर्ष 1986 में स्थापित किया गया था/यह लखनऊ - वाराणसी राजमार्ग के बाईं ओर पर स्थित है। इस उद्यानके बगल में  साई नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। रायबरेली - इलाहाबाद रेलवे लाइन के पश्चिम में चल रहा है जो लखनऊ - वाराणसी राजमार्ग के समानांतर है। इंदिरा गांधी वानस्पतिक उद्यान का कुल प्रस्तावित क्षेत्र 57 हेकटेयर में फैला है/
आज अगर रायबरेली के इस वनस्पति उद्यान  की बात करें तो यहां पर सोनिया गांधी के हाथो से  लगाया गया है और भूतपूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र तिवारी के द्वारा भी 22नवम्बर 1998 को  इन दोनों लोगों ने एक साथ बगल ही बगल में 2 पेड़ लगाए थे /इस वनस्पति उद्यान  की बीच-बीच में  स्वर्गीय श्री इंदिरा गांधी की 8 अप्रैल 2000 को सांसद सोनिया गाँधी  के द्वारा मूर्ति की अनावरण  की गई थी/ बदलते हुए सरकारों का भी आप हम रोल है इस पार्क के लिए क्योंकि बजट के हिसाब से यहां पर काफी कम पैसा मिलता है जब कांग्रेस की सरकार थी तब केंद्र की तरफ से पैसा बजट आया था/ लेकिन अब इसको देखने के लिए वन निगम की के अंतर्गत दे दिया गया है/ आज वनस्पति पार्क की हालत काफी देनी हो चुकी ह
 लेकिन इंदिरा गांधी के नाम पर इसे बड़ी मेहनत बड़ी लगन से इसे स्थापित किया था /वह इसलिए कि हमारी वनस्पति की धरोवर संजोग के हमारी अगली पीढ़ी रख सके और जान सके की इतिहास में क्या चीज हमने कोई है /और क्या उसको संजोकर हम रख सकते हैं लेकिन राजनीति के चक्कर में इतनी बेशकीमती जगह आज बुरी हालत में चल रही है हो गई है अगर वनस्पति उद्यान की बात करें तो ठीक इसके  कुछ दूरी पर  हाईवे निकला हुआ है /उसके बगल में कूड़ाघर बना रखा है नगर महापालिका के द्वारा वहां पर नगर महापालिका की गाड़ियां पूरा थक जाती हैं और उसमें आग लगाकर उसका जो धुआं निकलता है वह इस ज्ञान को काफी नुकसान पहुंचा रहा है इस पर सब लोगों से बात की गई तो लोगों ने कहा यह प्रदूषण से बुरी तरह चपेट में आ चुका है लेकिन कोई अधिकारी सुनने को तैयार नहीं है नाही आज कांग्रेस इस पर ज्यादा ध्यान दे पा रही है देखा जाए तो केवल राजनीत को चमकाने में लगे हैं इतिहास के पन्नों में आने वाले समय में शायद इंदिरा गांधी की इस बेशकीमती धरोवर को लोग जर्जर हालत में देखने पर मजबूर होंगे केवल एक जमीन का टुकड़ा रह जाएगा लोक देखेंगे तो पर किस निगाहों से यह तो समय ही बताएगा/

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