स्मार्ट तो ठीक, पर नए शहर कहां? (अमर उजाला) इन उम्र से लंबी सड़कों को, मंजिल पे पहुंचते देखा नहीं। बस दौड़ती, फिरती रहती हैं, हमने तो ठहरते देखा नहीं। थकी-हारी शहरी जिंदगी के दर्द को बेहतर ढंग से बयान करने के लिए ही गुलजार ने ये पंक्तियां लिखी थीं, जो शायद राजनीतिक वायदों के पूरा होने के कभी खत्म न होने वाले इंतजार को भी व्यक्त करती हैं। युवा, मध्यवर्ग और शहरी भारतीय, नरेंद्र मोदी के 2014 के चुनावी अभियान के ये सभी मुरीद थे। इसकी वजह यह थी कि इसमें समाधान का वायदा था। इसमें सबसे शानदार वायदा था सौ स्मार्ट शहर बनाने का। अपनी बदहाल जिंदगी से त्रस्त शहरी भारतीयों को इस वायदे में बेहतर भविष्य की उम्मीद दिखी। मोदी ने इस चुनौती में मौका देखा, और एक कामयाब नारे का सूत्रपात कर दिया। मगर यह कोई चुनावी नारा नहीं था। भारतीय जनता पार्टी के 2014 के चुनावी घोषणापत्र में कहा गया था, ′ह...