थानो मे तैनात बेलगाम दरोगाओं का कहर ,
खेतो मे सोने पर मजबूर पीडित दम्पति
रायबरेली- उत्तर प्रदेश के कड़क मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश व पुलिस मुख्यालय द्वारा आम जनता के साथ दोस्ताना व्यवहार से पेश आने के आदेशों को लेकर थानो मे तैनात बेलगाम दरोगा मानने को कतई तैयार ही नहीं है। जिले अलग अलग थानो मे तैनात दरोगाओं के अजीब कारनामे प्रकाश मे आये है जिन्हें लेकिन पीडित एसपी की चौखट का रुख अपनाया है,हालाकि बेलगाम पुलिस कर्मियों की शिकायत पुलिस मुख्यालय सेंटर पर आए दिन आती है लेकिन कड़ी कार्यवाही ना करने का नतीजा यह है कि थानो में तैनात पुलिसकर्मी सुधारने के बजाय उल्टा पीडितों के साथ उत्पीड़न जैसा व्यवहार करते हैं, पहला मामला थाना बछरावां क्षेत्र का है जहां चेकिंग के दौरान एक दरोगा गर्भवती महिला की पिटाई कर देता है मामला मीडिया के संज्ञान में आते ही पुलिस अधीक्षक मेडम उसे लाइन हाजिर कर देती है, दूसरा मामला थाना लालगंज क्षेत्र के सातनपुर का है जहां की निवासिनी निर्मला पत्नी बुधुन ने पुलिस अधीक्षक को शिकायती पत्र देते हुए अवगत कराया है कि उसकी जमीनी मामले में लालगंज थाने में तैनात दरोगा के डी के कनौजिया बगैर किसी महिला कांस्टेबल के रात लगभग 10: बजे उसके घर में घुसकर मारपीट तांडव करता है महिला का आरोप है कि उसके नाबालिग बच्चों को भी दरोगा नहीं बख्शता है,वही दूसरा मामला सलोन थाना क्षेत्र के कटरा मेरे ख्वाजा पुर का है जहां की वृद्ध महिला लक्ष्मी देवी अपने बूढ़े पति के साथ एसपी की चौखट पर पहुंचकर न्याय की गुहार लगाती है महिला का आरोप है कि उसका भी एक जमीनी मामला चल रहा है जिस मामले में राजकुमार नामक दरोगा एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए उसके पति की पिटाई कर देता है जिससे उसका चश्मा टूट जाता है यही नहीं वृद्ध महिला ने आरोप लगाया है कि दरोगा ने जातिसूचक गाली देकर कहा कि जब तक तुम एसपी से शिकायत करोगी तब तक तुम्हें किसी धारा में जेल भेज देंगे,
अब सवाल है कि जिस तरह से बेलगाम पुलिस कर्मियों की शिकायत लगातार कप्तान सुजाता सिंह की चौखट पर पहुच रही है जिसमे अधिकतर पुलिस द्वारा प्रताड़ित किए गए पीड़ितों का तांता लगा रहता है हालात ऐसे हैं जैसे बेलगाम दरोगाओं की जवाबदेही तय ही ना हो। कार्यवाही के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है पीड़ितों को उल्टा डांट फटकार कर दबिश देकर मामले को निपटाने का खेल स्थानीय थानो पर हो रहा
तो क्या कानून व्यवस्था धवस्थ चुकी है
रायबरेली, लगातार पुलिस द्वारा मनमानी से अंदाजा लगाया जा सकता है किस तरह रायबरेली की पुलिसिंग चरमरा चुकी है किसी भी अधिकारी की जवाबदेही तय नहीं है जिसका जैसे मन हो रहा है वैसे कर रहा है। पुलिस द्वारा लगातार एक पक्षीय कार्यवाही किसके इशारे पर की जाती है इसकी भी पड़ताल होना अपने आप में जरूरी हो चला है। समझा जाए तो जरूरी यह भी हो जाता है आखिरकार पीड़ित किसी भी तरीके से पुलिस मुख्यालय पहुंचते हैं जहां पर वह मीडिया के समक्ष रूबरू होते हैं अपनी परेशानी जाहिर करते हैं और ऐसा है नहीं की रायबरेली पुलिस इस से अनजान हो तो सवाल उठते हैं।
1.क्या कप्तान के आदेश को ताक पर रखकर थानों में तैनात सिपाही और दरोगा मनमानी कर रहे हैं अगर कर रहे हैं तो वह किसके इशारे पर कर रहे हैं?
2. क्या थानों पर तैनात करने से पूर्व दरोगाओं की स्क्रीनिंग की जाती है जिससे सिर्फ उन्हीं दरोगाओं को थाने की जिम्मेदारी दी जाए जो इमानदार और जुझारू है और अपराध पर नियंत्रण प्रभावी ढंग से कर सके।
3. जिस तरह से बछरावां थाने में गर्भवती स्त्री से दरोगा द्वारा मारपीट कर दी गई क्या उससे मानव अधिकारों का जरा भी एहसास नहीं था?
4. सलोन थाने में तैनात दरोगा राजकुमार ने जिस तरह से वृद्ध दंपत्ति पर दबिश का इस्तेमाल किया और मुख्यालय आने से रोकने के लिए मारपीट की
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