पत्रकारिता दिवस पर विशेष अनुज अवस्थी ‘समय और समाज के सन्दर्भ में सजग रहकर नागरिकों में दायित्व बोध कराने की कला को पत्रकारिता की संज्ञा दी गयी है।’ समाज हित में सम्यक प्रकाशन को पत्रकारिता कहा जाता है। असत्य, अशिव और असुन्दर पर सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् की शंख ध्वनि ही पत्रकारिता है। मनुष्य स्वभाव की हीन व्यत्तियों को उत्तेजना देकर, हिंसा-द्वेष फैलाकर, बड़ों की निन्दाकर, लोगों की घरेलू बात पर कुत्सिक टीका-टिप्पणी कर, अमोद-प्रमोद का अभाव अश्लीलता से पूर्ण करने की चेष्टा कर तथा ऐसे ही अन्य उपायों से समाचार पत्र की बिक्री और चैनलों का क्रेज बढ़ाया जा सकता है, महामूर्ख धनी की प्रशंसा के पुल बांधकर तथा स्वार्थ विशेष के लोगों के हित चिन्तक बनकर भी रुपया कमाया जा सकता है, देशभक्त बनकर भी स्वार्थ सिद्धि की जा सकती है, लेकिन सब सब पत्रकारिता की आड़ से हो तो कितना शर्मनाक है? आज की पत्रकारिता में उतरे स्वार्थी तत्व समाचार पत्र और पत्रकार शब्द के गौरव को नष्ट करने में लगे है। ‘लास ऐन्जेल्स टाइम्स’ के ‘ओटिस शैलेलर’ का मत है कि ‘सत्य का सामाजिक...