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चोर का राजा को प्राणदान का अनोखा किस्सा

चोर का राजा को प्राणदान का अनोखा किस्सा 


चोर और राजा के किस्से तो बहुत सुने होंगे। चोर पकड़ा जाता है राजा सजा देता है लेकिन यह इतिहास का एक ऐसा प्रसंग है जिसे 'भूतो ना भविष्यति' कहा जा सकता है। इस प्रसंग में चोर राजा की जान बचाता है और राज दरबार 'बख्शीश' में चोर के सारे गुनाह माफ कर देता है। इस प्रसंग की परतें 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम से कोई 10-12 बरस पहले खुलती-जुड़ती हैं। जनपद के प्रख्यात लेखक अमर बहादुर सिंह 'अमरेश' द्वारा जनपद के  प्रथम स्वाधीनता संग्राम के महानायक राना बेनी माधव सिंह पर एक किताब 1960 के दशक में लिखी गई थी। इस किताब में प्रथम स्वाधीनता संग्राम से पहले अवध के नवाब के नाजिम खान अली के साथ नायन में हुए युद्ध का जिक्र और राना बेनी माधव को बंदी बनाए जाने का किस्सा दर्ज है।
 आइए! सिलसिलेवार जानते हैं वह प्रसंग..
नायन राजा का नाजिम के खिलाफ विद्रोह

जिला तब कई तालुकों में बंटा था। अवध के नवाब ने निर्दयी खान अली को नाजिम बनाकर यहां भेजा हुआ था। नाजिम खान अली के अत्याचार से जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। उसने दीन शाह गौरा के तालुकेदार लालशाह पर हमला किया। उनकी मदद में चंदनिहा के राजा दौलत सिंह आगे आए लेकिन दोनों को  राजपाट छोड़कर भागना पड़ा। नाजिम खान अली ने दोनों के तालुके दूसरों को बांट दिए। थोड़े दिनों बाद लालशाह लौटे और अपनी रियासत पर फिर काबिज हो गए। उनको देखकर दौलत सिंह ने भी अपना राजपाट वापस ले लिया। यह नाजिम खान अली को रास नहीं आया। रणनीति के तहत खान अली काफी दिन तक चुप्पी साधे रहा। इस चुप्पी का असर यह हुआ कि नायन के राजा भगवान बख्श सिंह ने उसे 'कर' देना बंद कर दिया। उन्होंने बाकायदा इसकी घोषणा भी कर दी। नाजिम खान अली को नायन की घोषणा पसंद नहीं आई।  
पुत्र की मृत्यु के बाद राना बेनी माधव को लिया गोद

नायन और शंकरपुर के राजा आपस में रिश्तेदार थे। दोनों ही एक दूसरे की मदद किया करते थे। शंकरपुर के राजा शिव प्रसाद सिंह वृद्ध होते जा रहे थे। उनके एकमात्र पुत्र फतेह बहादुर सिंह का निधन हो गया। अपने उत्तराधिकारी के निधन से राजा चिंतित रहने लगे और बीमार पड़ गए। एकाएक उन्हें अपने भाई रामनारायण के पुत्र बेनीमाधव के संबंध में ज्योतिषियों की भविष्यवाणी याद आई। उन्होंने बेनी माधव को गोद लेने का निर्णय लिया। इसकी सूचना केंद्रीय शासन को भी भेज दी गई। बेनी माधव उनके उत्तराधिकारी बन गए। बेनी माधव को गोद लिए जाने के थोड़े दिन बाद ही राजा शिवप्रसाद सिंह का देहांत हो गया। 
नायन के राजा के यहां प्रीतिभोज में पिता के साथ गए थे राना

नाजिम खान अली को राजा शिवपसाद सिंह की मृत्यु के बाद का मौका अच्छा नजर आया। नायन के राजा भगवान बक्श सिंह के यहां प्रीतिभोज आयोजित किया गया था। बड़ी संख्या में लोगों को आमंत्रित किया गया कई राजा भी उपस्थित थे। शंकरपुर रियासत के उत्तराधिकारी राना बेनी माधव अपने पिता रामनारायण के साथ प्रीतिभोज में भाग लेने गए थे। तब उनकी अवस्था 20 वर्ष की ही थी। उसी दिन एकाएक नाजिम खान अली अपने सरदारों को लेकर नायन पहुंच गया। अचानक शोर की आवाज सुनकर प्रीतिभोज में आए सभी लोगों का ध्यान उधर गया। राना बेनी माधव अपने पिता रामनारायण सिंह के बगल में बैठे हुए थे। उन्होंने धीरे से बताया कि खान अली ने आक्रमण कर दिया है।
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प्रीतिभोज के पहले बही रक्त की धारा

प्रीतिभोज के समय ही नायन और नाजिम खान अली की सेनाओं में युद्ध शुरू हो गया। प्रीतिभोज की जगह रक्त की धाराएं बह निकलीं। अचानक पीछे से एक तलवार राना बेनी माधव के पिता रामनारायण सिंह की पीठ में घुपी और वह वीरगति को प्राप्त हो गए। 20 वर्ष के बालक राना बेनी माधव तलवार खींचकर समरांगण में कूद पड़े। उन्होंने खान अली के कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। खान अली के सरदारों ने बेनी माधव सिंह को पकड़ लिया। उनका एक सरदार मिर्जा बेनी माधव को गिरफ्त में लेकर जा रहा था, उसी बीच कोट पर खड़ी राजकुमारी ने एक कटार फेंककर मिर्जा को मारी। वह वहीं पर ढेर हो गया। यह देख कर खान अली का खून खौला लेकिन वह राजकुमारी छज्जे पर ही खड़ी रहकर ललकारती रही। खान अली के सैनिकों की हिम्मत उसे पकड़ने की नहीं हुई। उसकी दासी रुकमणी बाद में राजकुमारी को समझा-बुझाकर अंदर ले गई।
रायबरेली के किले  में कैद किए गए राना

खान अली के सरदारों ने राना बेनी माधव को कैद में लेकर रायबरेली के किले में बंद कर दिया। यह किला राजा डाल के भाई बाल ने बनवाया था। अब इस पर नवाबों ने कब्जा कर लिया था। खान अली के सैनिक इसी किले में डेरा डाले हुए थे। किले के चारों तरफ पहरेदार नियुक्त कर दिए गए। 
पान का बीड़ा उठाकर शिवदीन बोला- 'मैं करूंगा रक्षा'

राना बेनी माधव की गिरफ्तारी की सूचना पर राजमाता व्यथित हो गई। उन्होंने अपना दरबार बुलाया और राज्य की रक्षा के लिए राना को कैद से छुड़ाने के लिए प्रस्ताव रखा। चारों तरफ सन्नाटा जाने के बाद उन्होंने गुस्से में पान का एक बीड़ा रखते हुए कहा कि जो कोई राज्य की रक्षा करना चाहता है वह इस पान के बीड़े को उठाए। दरबार में सन्नाटा छाया हुआ था। सारे सरदारों के मुंह लटके हुए थे और आंखें झुकी हुई। तभी सन्नाटे को चीरते हुए  लोधवारी गांव के शिवदीन पासी ने हिम्मत के साथ पान का बीड़ा उठा लिया और गरबीली आवाज में कहा राज्य, जनता और राना की रक्षा को वह तैयार है। उसने कहा कि हमें एक तलवार और घोड़ा चाहिए। उन्हें तुरंत तलवार और घोड़ा उपलब्ध करा दिया गया और वह रायबरेली किले की तरफ चल दिए। 
शिवदीन की योजना और वह बूढ़ी महिला

शिवदीन ने राना बेनी माधव सिंह को छुड़ाने के लिए अपनी योजना में एक बूढ़ी महिला को शामिल किया। यह बूढ़ी महिला फकीर के भेष में रायबरेली किले के इर्द-गिर्द घूमती रही। उसने खान अली के सैनिकों की डांट-फटकार-तिरस्कार सब सहा। सर्दी के दिन थे। वह लकड़ियां बीनने किले के पीछे की तरफ गई और पेड़ के पीछे छिपे शिवदीन को कुछ जानकारी देकर फिर लौट आई। रात होने पर किले के बाहर थोड़ी दूर पर लकड़ियां जलाकर तापने लगी और वही लेट गई। किले के सारे पहरेदार सो गए एक पहरेदार बाहर गेट पर तैनात था। यह पहरेदार सैनिक भी आग ताप कर लौट जाता था। आते-जाते उसकी भिखारी महिला से गुफ्तगू भी होने लगी। रात होने पर चारों ओर सन्नाटा छा गया।  महिला ने लकड़ी फिर से जलाई और वही लेट गई। पहरेदार भी आकर आग तापने लगा। पहरेदार ने जोर से फूंका और थोड़ी ही देर में वह बेहोश हो गया। बूढ़ी महिला ने जोर से ताली बजाकर संकेत दिया और वहां से चली गई। इसके बाद शिवदीन पासी पीछे से रस्सी के सहारे किले के ऊपर चढ़ गए। छत काटकर राना बेनी माधव को रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ने को कहा लेकिन राना ने चोरी से भागने से मना कर दिया। इस पर शिवदीन ने तलवार से खुद आत्मघात करने की धमकी दी, तब राना ऊपर आए। रस्सी के सहारे पहले राना कूदे। उतरते समय रस्सी टूट गई और शिवदीन पासी धड़ाम से नीचे गिरकर घायल हो गया। तेज आवाज से किले के सैनिक जाग गए लेकिन तब तक राना घायल शिवदीन को लेकर घोड़े से निकल जा चुके थे। राना ने घायल शिवदीन का अपने किले में ही इलाज कराया।

शिवदीन कौन था ?

शिवदीन एक सेंधिया चोर था।  वह चोरी की नीयत से ही शंकरपुर आया था। यहां शंकरपुर के राजा के उत्तराधिकारी को खान अली द्वारा पकड़े जाने की सूचना मिलने पर ही वह राजमाता के राज दरबार में हाजिर हुआ। राना बेनी माधव को खान अली के कैद से छुड़ाकर लाने के इनाम के एवज में उसके सारे गुनाह माफ कर दिए गए। राजमाता ने उपहार में उसे 300 एकड़ जमीन भी दी। शिवदीन के वंशज आज भी लोधहारी गांव में रहते हैं। अब उनके पास जमीन बहुत नहीं बची है।
हीरा पासी को बनाया था अपना सेनापति

अमर बहादुर सिंह 'अमरेश' की किताब प्रमाणित करती है कि राना बेनी माधव सिंह ने लोधवारी गांव के ही हीरा पासी उर्फ रघुनाथ से प्रभावित होकर उन्हें अपनी सेना में शामिल किया। बाद में वह सेनापति भी बने। किताब के मुताबिक, राना अपने सिपाहियों के साथ घोड़े पर जा रहे थे। गांव की एक महिला अपने पुत्र हीरा पासी को इसलिए पीट रही थी कि वह सुअर चराने नहीं जा रहा था। राना ने चुपचाप उसकी बातें सुनीं।। हीरा अपनी मां से कह रहा है कि हमें सुअर नहीं चराना। हमें  राना की सेना में शामिल होना है। यह सुनकर राना ने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि मैं ही राना हूं। अपनी छाती खोल कर कहा कि वह घूंसा मारे। अगर छाती हिल गई तो सेना में शामिल कर लेंगे। उसके मुक्का मारने पर वाकई में राना की छाती झनझना गई। इससे प्रभावित होकर उन्होंने हीरा पासी को अपनी सेना में शामिल किया। बाद में वह सेनापति भी बना।
( लेखक- इतिहासकार अमर बहादुर सिंह 'अमरेश' की किताब 'राना बेनी माधव' से)

- गौरव अवस्थी
  रायबरेली 
   91-9415-034-340

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