वीवीआईपी जिले में मनरेगा में अब नहीं मिल रहा हर हाथ को काम
देरी से मजदूरी का भुगतान होने पर शहर की तरफ पलायन कर श्रमिक
रायबरेली जिले के श्रमिक मनरेगा के काम से अब दूर भाग रहे है। रोजगार गारंटी के बावजूद मजदूरों को मनरेगा योजना में देरी से होने वाले भुगतानके चलते श्रमिकों का इससे मोहभंग हो रहा है। हालात ये है कि चार लाख से अधिक श्रमिकों में से केवल दो लाख श्रमिकों को ही रोजगार मिल पा रहा है। अफसर यही दावा कर रहे है कि जो श्रमिक काम मांगतें है, उन्हे काम दिलाया जा रहा है। गांवों में नाली, खडंजा समेत अन्य कार्य तो चल रहे है, लेकिन इसमें और तेजी लाए जाने की जरुरत है, तभी हर हाथ को काम मिल पाएगा।
कांग्रेस अध्यक्ष एवं जिले की सांसद सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो यहां परा 989 ग्रामसभाएं है। वर्श 2018 के मार्च माह तक इन गांवों में मनरेगा के तहत 95 करोड़ रुपयें खर्च किए जाने है। अब तक 35.32 करोड़ रुपया खर्च किया जा सका है। कुल मनरेगा श्रमिकों की संख्या चार लाख 842 श्रमिक ही एक्टिव है। यानि इतने श्रमिकों ने मनरेगा के तहत कार्य मांगा है। वहीं स्थिति इकसे उलट है। दो वक्त की रोजी रोटी के लिए श्रमिक जिला मुख्यालय पर मजदूरी करने को विवष है। वजह श्रमिकों को पर्याप्त रुप से कार्य नहीं मिल पा रहा
ब्लाॅक इतनों ने मांगा काम इतनों को मिला काम
अमावां 2989 2983
बछरावां 5495 5485
छतोह 3388 3364
डलमउ 7839 7838
दीनषाहगौरा 3363 3362
डीह 4490 4475
हरचंदपुर 2728 2724
जगतपुर 3826 3822
खीरों 4394 4393
लालगंज 4068 4065
महराजगंज 3172 3171
राही 6069 6063
रोहनिया 2570 2571
सलोन 6987 6935
सतांव 2627 2626
षिवगढ़ 3141 3136
उंचाहार 4520 4517
कुल 75259 75119
ये आंकडे़ वर्श 2017-18 के है।
मनरेगा उपायुक्त अनिल सिंह का कहना है कि जिले के हर गांव में मनरेगा के तहत नाली, खड़जा समेत अन्य कार्य कराए जा रहे है। चार लाख में से दो लाख मनरेगा श्रमिक ही एक्टिव है। यानि काम मांगने पर श्रमिकों को रोजगार दिलाया जा रहा है। धन की कोई कमी नही है। जो कार्य हो रहे है, उन्हें समय से पूरा होगा। उनका कहना है कि पूरे प्रयास किए जा रहे है कि खाली हाथों को काम मिले और उन्हे रोजी रोटी के लिए षहर न जाना पड़े।
माला सिंह का कहना है कि महिलाओं कों काम तो कभी कभी मिल जाता था। लेकिन अब प्रधान दूसरे बन गये है तो वह ज्यादातर अपने लोगों को काम दे रहे है। उसमें भी वह महिलाओं से काम तो करा रहे है लेकिन पैसे के लिये काफी परेषान करते है और अधिकारीओं के पास षिकायत लेकर जाओं तो कोई सुनवाई नही होती है। इस लिये मनरेगा जैसी योजना आज की महगांई में सही साबित नही हो रही है।
अमृतलाल का भी कहना है कि मनरेगा जैसी योजना में आज के समय में वह फायदा नही मिल रहा है । क्योकि यह गांव और ग्रामीणों को और उनकी रोजी रोटी के लिये एक अच्छा साधन था लेकिन कुछ प्रधानों की बदौलत गांव के श्रमिकों को यह काम नही मिल पा रहा है । क्योकि जो प्रधान को वोट दिया है और उनके पक्ष में रहता है उनको ही काम मिलता है जो विपक्ष में होता है उसको किसी भी प्रकार से काम नही दिया जाता है।
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