भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं के पीछे का जितना बैकग्राउंड काम है उसको सँभालने वाले तंत्र कितने विश्वसनीय और योग्य हैं?
सामान्यतः सरकार का वह विभाग या एजेंसी जो किसी प्रतियोगी परीक्षा कराने की ज़िम्मेदार होती है, किसी थर्ड पार्टी/कंपनी को परीक्षा-पत्र बनाने के लिए हायर करती है. यह कंपनी निर्धारित समयावधि में प्रश्नपत्र के कई सेट बनाकर देती है. कंपनी एक (या कई) टीम बनाकर इस काम को पूरा करती है. मुझे यहाँ मामला थोड़ा पेंचीदा लगता है, और कुछ सवाल जहन में आते हैं-
1) प्रश्नपत्रों की सीक्रेसी कैसे मेंटेन होती है?
2) जो लोग यह प्रश्नपत्र बनाने के काम में लगे हैं वे कितने विश्वशनीय हैं, और क्या वे इन प्रश्नपत्रों को बना पाने योग्य हैं?
३ प्रश्नपत्र बनाने वाले व्यक्ति लगातार (दिनों/महीनों) तक एक जैसे प्रश्नो को पढ़ते और तैयार करते हैं. ऐसे में यदि वे प्रश्नपत्र बाहर लेकर न भी आएं, क्या यह संभव नहीं है कि वे इस कार्य के दौरान अपने अभ्यास और याद्दाश्त का प्रयोग करके उन (/उन जैसे) प्रश्नो को आगे सर्कुलेट कर दें? इसके लिए उनकी जवाबदेही कैसे बनेगी?
यह थोड़ा फिलोसोफिकल प्रश्न है कि किसी की योग्यता का परिचय हमारे यहाँ याददाश्त पर निर्भर क्यों करता है।
आशीष सिंह
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