रायबरेली के सिमहैंस हॉस्पिटल में इस कविता के रचनाकार सुधीर मिश्रा अपनी नौकरी करते हैं लेकिन कविता लिखना उनका अपना एक शौक है इसीलिए आज मातृ दिवस पर सभी लोगों की माताओं के लिए यह कविता प्रस्तुत की है।
मां ओ मेरी मां
एक बार मुझे फिर से अपने आंचल में छुपा ले मां
एक बार मुझे फिर से अपने गले लगा ले मां
बहुत दिनों से सो ना पाया
एक बार मुझे फिर से अपनी गोद में सुला दे मां
मैं क्या मांगू उस रब से जिसने मुझे तुम्हें दिया मां
तेरी दुआओं से मेरी झोली भर जाती है मां
बहुत चल चुका हूं थक भी गया हूं
पर तुझे याद कर जी जाता हूं मां
बहुत होटलों में अच्छा खाना खाया
पर तेरे हाथ की सूखी रोटी की याद सताती है मां
अब मैं बड़ा हो गया हूं तो भी क्या मां
तेरा तो मैं बच्चा हूं
मुझे अपने आंचल में छुपा ले मां
बहुत पैसा बहुत नाम कमाया मैंने
पर फिर भी तेरी झोली ना भर पाया मां
भूल गया था अपने अहम में
कि तू ही मेरी दौलत तू ही मेरी किस्मत
तू ही मेरा भगवान तू ही मेरी जन्नत
अपने इस शैतान को फिर से इंसान बना दे मां
अपने आंचल में फिर से एक बार छुपा ले मां
जैसे बचपन में रोता था
एक बार फिर से मुझे रुला दे मां
मेरे आंसुओं को अपने आंचल में छुपा ले मां
मां मुझे प्यार कर दुलार कर
एक बार मुझे फिर से अपनी गोद में छुपा ले मां
चांद तारों की राजा रानी की
कहानियां फिर से एक बार सुना दे मां
अपनी लोरी से मुझे सुला दे मां
भेज कर अपने सीने से मुझे लगा ले मां
अपने चरणों के तले मुझे जन्नत दिखा दे मां
बस यही आखरी आरजू है मेरी
अपने हाथों से एक रोटी खिला दे मां
अपने आंचल में छुपा ले में मां
अपने गले से लगा ले मां
मां ओ मेरी मां
मेरी मां के लिए
सुधीर मिश्रा द्वारा रचित कविता
मेरा अनुरोध इसे कापी पेस्ट न करें
इसे सम्मान दें।
मैं तहेदिल से आप सभी का आभारी रहूंगा
मां ओ मेरी मां
एक बार मुझे फिर से अपने आंचल में छुपा ले मां
एक बार मुझे फिर से अपने गले लगा ले मां
बहुत दिनों से सो ना पाया
एक बार मुझे फिर से अपनी गोद में सुला दे मां
मैं क्या मांगू उस रब से जिसने मुझे तुम्हें दिया मां
तेरी दुआओं से मेरी झोली भर जाती है मां
बहुत चल चुका हूं थक भी गया हूं
पर तुझे याद कर जी जाता हूं मां
बहुत होटलों में अच्छा खाना खाया
पर तेरे हाथ की सूखी रोटी की याद सताती है मां
अब मैं बड़ा हो गया हूं तो भी क्या मां
तेरा तो मैं बच्चा हूं
मुझे अपने आंचल में छुपा ले मां
बहुत पैसा बहुत नाम कमाया मैंने
पर फिर भी तेरी झोली ना भर पाया मां
भूल गया था अपने अहम में
कि तू ही मेरी दौलत तू ही मेरी किस्मत
तू ही मेरा भगवान तू ही मेरी जन्नत
अपने इस शैतान को फिर से इंसान बना दे मां
अपने आंचल में फिर से एक बार छुपा ले मां
जैसे बचपन में रोता था
एक बार फिर से मुझे रुला दे मां
मेरे आंसुओं को अपने आंचल में छुपा ले मां
मां मुझे प्यार कर दुलार कर
एक बार मुझे फिर से अपनी गोद में छुपा ले मां
चांद तारों की राजा रानी की
कहानियां फिर से एक बार सुना दे मां
अपनी लोरी से मुझे सुला दे मां
भेज कर अपने सीने से मुझे लगा ले मां
अपने चरणों के तले मुझे जन्नत दिखा दे मां
बस यही आखरी आरजू है मेरी
अपने हाथों से एक रोटी खिला दे मां
अपने आंचल में छुपा ले में मां
अपने गले से लगा ले मां
मां ओ मेरी मां
मेरी मां के लिए
सुधीर मिश्रा द्वारा रचित कविता
मेरा अनुरोध इसे कापी पेस्ट न करें
इसे सम्मान दें।
मैं तहेदिल से आप सभी का आभारी रहूंगा
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