रजत जयंती वर्ष : हम हैं राही स्मृति अभियान के यही तारीख थी नौ मई। साल 1998। अपने ही गांव-घर, जनपद, प्रदेश और देश में भुला-बिसरा दिए गए हिंदी के प्रथम आचार्य हम सबको एक भाषा, एक बोली-बानी और नवीन व्याकरण देने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की स्मृतियों को संजोने से जुड़ा अभियान शुरू हुआ। शुरुआत 42 डिग्री सेल्सियस की भीषण गर्मी के बीच रायबरेली शहर के शहीद चौक से ध्यानाकर्षण धरने के माध्यम से हुई। यह एक शुरुआत भर थी। कोई खाका नहीं। कोई आका नहीं। कुल जमा 40-50 और पवित्र संकल्प इस अभियान की नींव में थे। प्रकृति या यूं कहें खुद आचार्य जी ने शहीद चौक पर जुटे अनुयायियों की परीक्षा ली। टेंट के नीचे बैठे लोग अपने इस पूर्वज और हिंदी के पुरोधा की यादों को जीवंत बनाने का संकल्प ले ही रहे थे कि तेज अंधड़ से 18×36 का टेंट उड़ गया। लोग बाल बाल बचे लेकिन कोई डिगा न हटा। ध्यानाकर्षण धरना अपने तय समय पर ही खत्म हुआ। पहली परीक्षा में पास होने के बाद चल पड़ा स्मृति संरक्षण अभियान आप सब के सहयोग-स्नेह और संरक्षण से कई पड़ाव पार करते हुए आज यहां तक पहुंचा है। अभियान का यह ...